श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर: इतिहास, स्थापत्य, देवता, पूजा पद्धति और विवाद

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर, जिसे श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है, भारत के पवित्रतम धर्मिक स्थलों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम नामक स्थान में स्थित है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां मल्लिकार्जुन के रूप में पूजा जाता है।

इतिहास

मंदिर के इतिहास के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनमें से कुछ का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और ब्रह्मांड पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।

  • पौराणिक कथाएं: एक कथा के अनुसार, पार्वती जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिवजी उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दार्शनिक दिए। पार्वती जी ने उनसे पृथ्वी पर वास करने का अनुरोध किया। तब शिवजी ने मल्लिकार्जुन के रूप में श्रीशैलम में निवास करने का निर्णय लिया।
  • ऐतिहासिक साक्ष्य: ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण 2世紀 (द्वितीय शताब्दी) ईसा पूर्व के आसपास हुआ था। हालांकि, मंदिर के अधिकांश वास्तुशिल्प का निर्माण 6ठी से 16वीं शताब्दी के बीच के विभिन्न राजवंशों के शासनकाल में हुआ था। चालुक्य, राष्ट्रकूट, चोल और विजयनगर साम्राज्य सहित कई राजवंशों ने मंदिर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

स्थापत्य

श्री मल्लिकार्जुन मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर परिसर में कई मंडप (हॉल), गोपुरम (द्वार), और मंदिर शामिल हैं।

  • प्रवेश द्वार: मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए तीन मुख्य द्वार हैं। पहला द्वार बाहरी प्राचीर में स्थित है, दूसरा राज गोपुरम है, और तीसरा अंतःपुरम गोपुरम है। राज गोपुरम 12 मंजिलों वाला है और इसे दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे गोपुरमों में से एक माना जाता है।
  • मंडप: परिसर में कई मंडप हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण हजार खंभों वाला मंडप (सहस्र खंभा मंडप) है। इस मंडप में 1000 से अधिक खंभे हैं, जो सभी नक्काशीदार हैं। अन्य उल्लेखनीय मंडपों में स्वर्ण गृह (सोने का मंडप), शाना मंडप (銅 – तांबे का मंडप) और कई छोटे मंडप शामिल हैं।
  • मंदिर: मुख्य मंदिर में दो गर्भगृह (पवित्रतम गर्भ) हैं। पहला गर्भगृह भगवान मल्लिकार्जुन को समर्पित है, और दूसरा देवी पार्वती को, जिन्हें यहां ब्रह्मारम्बा के नाम से जाना जाता है। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं से संबंधित कई मूर्तियां और नक्काशी हैं।

देवता

मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव हैं, जिन्हें यहां मल्लिकार्जुन के रूप में पूजा जाता है। “मल्लिकार्जुन” नाम का अर्थ है “मल्लिका” (अपराजिता – एक प्रकार का फूल) और “अर्जुन” (अर्जुन का पेड़)। यह नाम इस बात का प्रतीक है कि भगवान शिव विपरीतताओं का संतुलन बनाए रखते हैं। देवी पार्वती को मंदिर में ब्रह्मारम्बा के रूप में पूजा जाता है।

पुजारी, भट्ट और राजभंडारी

मंदिर में पूजा-अर्चना का कार्य पुजारियों, भट्टों और राजभंडारियों द्वारा किया जाता है।

  • पुजारी: पुजारी वे होते हैं जो मंदिर में प्रतिदिन की पूजा-अर्चना और अनुष्ठानों का संचालन करते हैं। इनमें से कुछ पुजारी मंदिर प्रशासन के अंतर्गत होते हैं, जबकि कुछ पुजारी वंशानुगत रूप से पूजा का कार्य करते हैं।
  • भट्ट: भट्ट वे विद्वान होते हैं जो वैदिक मंत्रों का जाप करते हैं और वेदों का पाठ करते हैं। ये मंत्र पूजा अनुष्ठानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। मंदिर में कई भट्ट होते हैं, जिनमें से कुछ मंदिर प्रशासन द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, जबकि कुछ वंशानुगत रूप से यह कार्य करते हैं।
  • राजभंडारी: राजभंडारी मंदिर के खजाने और संपत्ति की देखभाल करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। ये पद भी अक्सर वंशानुगत रूप से प्राप्त होते हैं।

प्रवेश और दर्शन

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर आम जनता के लिए खुला है। मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है। हालांकि, कुछ विशेष दर्शनों और पूजाओं के लिए शुल्क लग सकता है। मंदिर सुबह जल्दी से लेकर शाम तक खुला रहता है। दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को उचित वस्त्र धारण करने की अपेक्षा की जाती है।

मंदिर में दर्शन के लिए अलग-अलग कतारें होती हैं। निःशुल्क दर्शन के लिए एक सामान्य कतार होती है। इसके अलावा, दर्शन के लिए शीघ्र दर्शन और विशेष दर्शन जैसी अन्य व्यवस्थाएं भी हैं।

अभिषेक

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर में भक्त भगवान मल्लिकार्जुन का अभिषेक कर सकते हैं। अभिषेक एक पवित्र अनुष्ठान है जिसमें पवित्र जल, दूध, दही, शहद, घी, फल और फूल आदि से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि अभिषेक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मंदिर प्रशासन द्वारा निर्धारित शुल्क का भुगतान करके मंदिर में अभिषेक की व्यवस्था की जा सकती है।

त्यौहार

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर में कई महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:

  • शिवरात्रि: महाशिवरात्रि का त्योहार मंदिर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन हजारों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
  • श्रावण मास: श्रावण का पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस महीने में मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है।
  • कार्तिक पूर्णिमा: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर में बड़े उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को दीपों से जगमगाया जाता है।
  • मार्गशीर्ष सोमवार: प्रत्येक माह के सोमवार को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। मार्गशीर्ष माह के सोमवार को होने वाली पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।

विवाद

कुछ विवाद मंदिर के पुजारियों और भट्टों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर रहे हैं। परंपरागत रूप से इन पदों को वंशानुगत रूप से भरा जाता रहा है। हालांकि, कुछ का मानना है कि यह प्रथा भेदभाव को बढ़ावा देती है और योग्यता के आधार पर नियुक्ति होनी चाहिए।

यह भी विवाद का विषय रहा है कि मंदिर के खजाने और संपत्ति का प्रबंधन कैसे किया जाता है। कुछ का मानना है कि मंदिर के खजाने में पारदर्शिता की कमी है।

मंदिर की अनूठी विशेषताएं

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर कई अनूठी विशेषताओं के लिए जाना जाता है, जिनमें शामिल हैं:

  • मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो भगवान शिव के 12 सबसे पवित्र निवास स्थानों में से एक माने जाते हैं।
  • नटराज मूर्ति: मंदिर परिसर में एक खूबसूरत नटराज (नृत्य करते हुए शिव) की मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति दक्षिण भारतीय मूर्तिकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • सहस्रलिंग: मंदिर परिसर में एक चट्टान पर एक हजार से अधिक शिवलिंगों को उकेरा गया है, जिसे सहस्रलिंग के नाम से जाना जाता है।
  • त्रिकुटा पर्वतमाला: मंदिर त्रिकुटा पर्वतमाला की तलहटी में स्थित है। माना जाता है कि यह पर्वतमाला भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) का प्रतिनिधित्व करती है।
  • कृष्णा नदी: मंदिर के पास से पवित्र कृष्णा नदी बहती है। कई श्रद्धालु मंदिर दर्शन से पहले या बाद में कृष्णा नदी में स्नान करना शुभ मानते हैं।

दैनिक पूजा अनुष्ठान

मंदिर में प्रतिदिन कई पूजा-अर्चनाएं की जाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख पूजाएं इस प्रकार हैं:

  • मंगला आरती: यह दिन की पहली आरती होती है, जो सूर्योदय से पहले की जाती है।
  • अभिषेक: सुबह के समय भगवान मल्लिकार्जुन का अभिषेक किया जाता है।
  • श्रृंगार पूजा: इस पूजा में भगवान को वस्त्र, आभूषण और अन्य सामग्री चढ़ाई जाती है।
  • नैवेद्यम: भगवान को भोजन का भोग लगाया जाता है।
  • आरती: दिन में कई बार आरती की जाती है, जिसमें दीप जलाकर भगवान की स्तुति की जाती है।
  • शयन आरती: यह दिन की अंतिम आरती होती है, जो सूर्यास्त के बाद की जाती है।

आस-पास के दर्शनीय स्थल

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर के दर्शन के साथ ही आप आसपास के कुछ अन्य दर्शनीय स्थलों को भी देख सकते हैं:

  • अक्कम महादेवी मंदिर: यह मंदिर भगवान शिव की पत्नी माता सती को समर्पित है।
  • ब्रह्मकुंड: यह एक पवित्र कुंड है, जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं।
  • पालेरु झरना: यह एक खूबसूरत झरना है, जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

मंदिर तक कैसे पहुंचे

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित है। आप हवाई जहाज, ट्रेन या सड़क मार्ग से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

  • हवाई जहाज: निकटतम हवाई अड्डा कurnool Airport (Kurnool) है, जो मंदिर से लगभग 180 किलोमीटर दूर है।
  • ट्रेन: निकटतम रेलवे स्टेशन Markapur Railway Station (Markapur) या Tarlupadu Railway Station (Tarlupadu) है। ये स्टेशन मंदिर से लगभग 2 से 2.5 घंटे की दूरी पर हैं।
  • सड़क मार्ग: आप सड़क मार्ग से भी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। मंदिर आंध्र प्रदेश के कई प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

मंदिर की मान्यताएं और लोक कथाएं

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर कई मान्यताओं और लोक कथाओं से जुड़ा हुआ है।

  • मोक्ष की प्राप्ति: ऐसा माना जाता है कि जो श्रद्धालु सच्ची श्रद्धा से मंदिर में दर्शन करते हैं और भगवान मल्लिकार्जुन की पूजा करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • पार्वती जी का तप: एक लोक कथा के अनुसार, पार्वती जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। शिवजी उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दार्शनिक दिए। पार्वती जी ने उनसे पृथ्वी पर वास करने का अनुरोध किया। तब शिवजी ने मल्लिकार्जुन के रूप में श्रीशैलम में निवास करने का निर्णय लिया।
  • सर्प दोष का निवारण: ऐसा माना जाता है कि मंदिर में दर्शन करने और पूजा करने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
  • मंदिर का स्वयंभू होना: कुछ लोक कथाओं में यह उल्लेख मिलता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू है, अर्थात यह स्वयं प्रकट हुआ था।

सांस्कृतिक महत्व

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर का भारत की संस्कृति और धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर सदियों से लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। मंदिर में होने वाले विभिन्न उत्सव और अनुष्ठान दक्षिण भारत की समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं।

मंदिर प्रशासन

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर का प्रशासन आंध्र प्रदेश सरकार के देवस्थानम विभाग द्वारा किया जाता है। विभाग मंदिर के रखरखाव, पूजा-अर्चनाओं के आयोजन और मंदिर की संपत्ति के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है।

भविष्य की योजनाएं

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर के आसपास के क्षेत्र के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई जा रही हैं। इन योजनाओं में शामिल हैं:

  • पर्यटक सुविधाओं का विकास: मंदिर आने वाले पर्यटकों के लिए बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें आवास, भोजन और परिवहन सुविधाओं को बेहतर बनाना शामिल है।
  • मंदिर परिसर का विस्तार: मंदिर परिसर के विस्तार की योजना बनाई जा रही है ताकि अधिक श्रद्धालुओं को दर्शन करने में सहूलियत हो सके।
  • डिजिटल मंदिर: मंदिर प्रशासन डिजिटल मंदिर बनाने की भी योजना बना रहा है। इससे दूर रहने वाले श्रद्धालु ऑनलाइन दर्शन कर सकेंगे और मंदिर में होने वाली पूजा-अर्चनाओं को देख सकेंगे।

आशा है कि श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर के बारे में यह विस्तृत जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। यदि आप मंदिर के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप मंदिर के आधिकारिक वेबसाइट को देख सकते हैं।sharemore_vert

मंदिर की कला और स्थापत्य शैली

श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली, विशेष रूप से द्रविड़ शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर परिसर कई मंडपों (हॉल), गोपुरमों (द्वारों), मंदिरों और मूर्तियों से सुसज्जित है, जिनमें से प्रत्येक में कलात्मक उत्कृष्टता झलकती है।

  • विवरणात्मक मूर्तियां: मंदिर की बाहरी दीवारों पर देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं के दृश्यों, और ज्यामितीय आकृतियों को दर्शाती हुई जटिल और विस्तृत मूर्तियां उकेरी गई हैं। ये मूर्तियां न केवल सौंदर्य की दृष्टि से मनमोहक हैं, बल्कि हिंदू धर्म और पौराणिक कथाओं को भी दर्शाती हैं।
  • स्तंभों पर कलाकृति: मंदिर के विभिन्न मंडपों में खंभों पर भी शानदार कलाकृति देखने को मिलती है। इन खंभों पर देवी-देवताओं, नृत्य करने वाले कलाकारों, जानवरों और फूलों की मूर्तियां उकेरी गई हैं। कुछ खंभों पर जटिल ज्यामितीय पैटर्न भी देखने को मिलते हैं।
  • गोपुरमों की भव्यता: मंदिर परिसर में चार मुख्य गोपुरम हैं, जो पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशाओं में स्थित हैं। इनमें से सबसे ऊंचा राज गोपुरम है, जो 12 मंजिलों वाला है और दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे गोपुरमों में से एक माना जाता है। गोपुरमों की दीवारें रंगीन मूर्तियों और मूर्तियों से सजाई गई हैं, जो दूर से ही श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं।
  • मंदिर का गर्भगृह: मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान मल्लिकार्जुन का काले ग्रेनाइट से बना शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह की दीवारों पर भी धार्मिक महत्व वाली मूर्तियां उकेरी गई हैं।
  • हजार खंभों का मंडप (सहस्र खंभा मंडप): यह मंडप मंदिर परिसर के सबसे प्रभावशाली ढांचों में से एक है। जैसा कि नाम से पता चलता है, इस मंडप में 1000 से अधिक खंभे हैं, जिनमें से प्रत्येक पर जटिल नक्काशी की गई है। खंभों के अलावा, मंडप की छत पर भी शानदार नक्काशी देखने को मिलती है।

मंदिर से जुड़े उत्सवों का विस्तृत विवरण

  • शिवरात्रि: महाशिवरात्रि का त्योहार मंदिर में सबसे धूमधाम से मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन हजारों श्रद्धालु मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने और उनका जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। रात भर भजन-कीर्तन और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
  • श्रावण मास: श्रावण का पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। पूरे महीने मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। सोमवार का दिन भगवान शिव को विशेष रूप से प्रिय माना जाता है, इसलिए श्रावण के सोमवार को मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
  • कार्तिक पूर्णिमा: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर में दीपोत्सव का भव्य आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को हजारों दीपों से जगमगाया जाता है और भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है।
  • ब्रह्मोत्सवम: ब्रह्मोत्सवम मंदिर में मनाया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव है। यह उत्सव 10 दिनों तक चल

ब्रह्मोत्सवम का विस्तृत विवरण

  • ब्रह्मोत्सवम: ब्रह्मोत्सवम मंदिर में मनाया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव है। यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है और इसमें कई धार्मिक अनुष्ठान और जुलूस शामिल होते हैं। उत्सव के दौरान, भगवान मल्लिकार्जुन और देवी पार्वती (ब्रह्मारम्बा) की मूर्तियों को मंदिर परिसर में भव्य रूप से सजाए गए वाहनों पर विराजमान कराया जाता है। ये वाहन विभिन्न देवी-देवताओं और पौराणिक कथाओं के पात्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

ब्रह्मोत्सवम के कुछ प्रमुख अनुष्ठान इस प्रकार हैं:

  • ध्वजारोहण: उत्सव की शुरुआत ध्वजारोहण के साथ होती है, जिसमें मंदिर के ऊपर एक ध्वज फहराया जाता है।
  • Sesha Vahana: पहले दिन, भगवान मल्लिकार्जुन और देवी पार्वती को शेषनाग (सर्पों के राजा) के वाहन पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है।
  • हंस वाहन: दूसरे दिन, भगवान और देवी को हंस वाहन पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। हंस पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
  • गज वाहन: तीसरे दिन, भगवान और देवी को भव्य रूप से सजाए गए हाथी के वाहन पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। हाथी शक्ति और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।
  • अश्व वाहन: चौथे दिन, भगवान और देवी को घोड़े के वाहन पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। घोड़ा वीरता और गति का प्रतीक माना जाता है.
  • ഋषभ वाहन (Rishabha Vahana): पांचवें दिन, भगवान और देवी को बैल के वाहन पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। बैल धर्म और सrighteousness (राइटियसनेस) का प्रतीक माना जाता है।

ब्रह्मोत्सवम के दौरान रात में भी कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भजन, कीर्तन, और नाट्य (नृत्य प्रदर्शन) शामिल हैं। उत्सव का समापन एक भव्य समारोह के साथ होता है, जिसमें भगवान मल्लिकार्जुन और देवी पार्वती की मूर्तियों को वापस गर्भगृह में ले जाया जाता है।

मंदिर में दर्शन के लिए सुझाव

  • वस्त्र: मंदिर में प्रवेश के लिए उचित वस्त्र धारण करना आवश्यक है। धोती या कुर्ता पुरुषों के लिए उपयुक्त वस्त्र हैं, जबकि महिलाओं के लिए साड़ी या सलवार कमीज उपयुक्त हैं। बहुत छोटे कपड़े या बिना आस्तीन के कपड़े पहनकर मंदिर में प्रवेश करने से बचना चाहिए।
  • प्रसाद: आप मंदिर के बाहर से फूल, प्रसाद (भोग) और पूजा की सामग्री खरीद सकते हैं। आप इन्हें भगवान को चढ़ा सकते हैं या बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण कर सकते हैं।
  • जूते: मंदिर परिसर के अंदर जूते पहनकर प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। मंदिर के बाहर जूते रखने के लिए निःशुल्क लॉकर सुविधा उपलब्ध है।
  • कैमरा: मंदिर के गर्भगृह के अंदर फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है। हालांकि, मंदिर परिसर के अन्य क्षेत्रों में आप फोटो ले सकते हैं।
  • शांत रहें: मंदिर एक पवित्र स्थान है। अपनी बातचीत को कम रखें और दूसरों की पूजा में बाधा न डालें।

मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय इन सुझावों को ध्यान में रखने से आपका मंदिर दर्शन सुखद और सार्थक बन सकता है।

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